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Morarji Desai: गांधीवादी विचारधारा का एक जीता-जागता उदाहरण
Morarji Desai का जन्म 1896 में गुजरात के एक छोटे से गाँव में हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और गांधीजी के सिद्धांतों को अपने जीवन का आधार बनाया। उनकी सादगी और अटल नैतिकता के किस्से मशहूर थे—जैसे, प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह सरकारी आवास में एयर कंडीशनर का उपयोग नहीं करते थे। 1977 में जब वह PM बने, तो उन्होंने “सत्य और अहिंसा” को देश की विदेश नीति का हिस्सा बनाने की कोशिश की।
1971 का युद्ध: परमाणु हथियारों की ओर बढ़ते कदम
- बांग्लादेश मुक्ति संग्राम: पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद भारत की सैन्य शक्ति को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली, लेकिन इसी दौरान चीन और अमेरिका के समर्थन से पाकिस्तान ने खुद को फिर से संगठित करना शुरू किया।
- पोखरण-1 (1974): इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया। इसके पीछे मुख्य कारण चीन का 1964 में किया गया परमाणु परीक्षण और अमेरिका का पाकिस्तान को सैन्य सहायता थी।
- भुट्टो की प्रतिक्रिया: पाकिस्तान के तत्कालीन PM जुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा, “भारत ने साबित कर दिया कि वह दक्षिण एशिया का ‘बॉस’ बनना चाहता है। हमें अपनी सुरक्षा के लिए बम चाहिए।” उन्होंने गोपनीय “प्रोजेक्ट-706” शुरू किया, जिसके तहत ए.क्यू. खान यूरोप से तकनीक चुराकर लाए।
CIA की रिपोर्ट: वह गोपनीय बैठक जिसने इतिहास बदल दिया
1978 की एक सुबह, अमेरिकी राजदूत ने देसाई को एक सीलबंद लिफाफा सौंपा। इसमें CIA की रिपोर्ट थी, जिसमें पाकिस्तान के कहमा रिएक्टर में यूरेनियम संवर्धन और ए.क्यू. खान की गतिविधियों का विवरण था। अमेरिका ने प्रस्ताव रखा: “भारत पाकिस्तान के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक करे, हम समर्थन करेंगे।”
- Morarji Desai का जवाब: “हम हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं देंगे। अगर पाकिस्तान बम बनाता है, तो हम उन्हें समझाएंगे कि यह मानवता के खिलाफ है।”
- CIA के पूर्व अधिकारी की टिप्पणी: 2005 में एक लीक हुई रिपोर्ट के मुताबिक, CIA ने देसाई को “अव्यावहारिक आदर्शवादी” बताया, जिसने पश्चिमी हितों को नज़रअंदाज़ किया।
वैश्विक प्रतिक्रियाएँ: शीतयुद्ध का खेल
- अमेरिका की दुविधा: 1979 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा किया, तो अमेरिका ने पाकिस्तान को “सामरिक साझेदार” मानते हुए उसके परमाणु कार्यक्रम को अनदेखा कर दिया।
- चीन की भूमिका: चीन ने पाकिस्तान को परमाणु तकनीक और मिसाइल डिज़ाइन दिए। 1983 में पाकिस्तान ने चीन की मदद से अपना पहला परमाणु डिवाइस बनाया।
- भारत की निष्क्रियता: देसाई के बाद इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भी पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई से परहेज किया। कुछ विश्लेषक मानते हैं कि 1980 के दशक में भारत के पास पाकिस्तान के कहमा रिएक्टर को नष्ट करने का सुनहरा मौका था।
तुलनात्मक विश्लेषण: इजरायल vs. भारत
- ओसिराक रिएक्टर हमला (1981): इजरायल ने इराक के परमाणु संयंत्र को बमबारी से उड़ा दिया, जिससे सद्दाम हुसैन का सपना चकनाचूर हो गया।
- भारत की रणनीतिक चुप्पी: भारतीय सेना के एक पूर्व जनरल ने 2018 के एक इंटरव्यू में कहा, “1980 में हमारे पास क्षमता थी, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी। देसाई का फैसला आज तक हमें प्रभावित कर रहा है।”
Morarji Desai की अनदेखी विरासत: अर्थव्यवस्था से लेकर विदेश नीति तक
- समाजवाद पर जोर: Morarji Desai ने लाइसेंस राज को कमजोर करने की कोशिश की, लेकिन उनकी सरकार का अधूरा कार्यकाल सुधारों को पूरा नहीं होने दिया।
- पाकिस्तान के साथ संवाद: 1978 में उन्होंने पाकिस्तानी राष्ट्रपति जिया-उल-हक को शांति वार्ता का निमंत्रण दिया, लेकिन पाकिस्तान ने इसे कमजोरी का संकेत समझा।
- परमाणु अप्रसार संधि (NPT): Morarji Desai ने NPT पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, क्योंकि यह संधि “परमाणु हथियार रखने वाले देशों की तानाशाही” थी।
1998 का परमाणु परीक्षण: Morarji Desai के फैसले का अंतिम परिणाम
- पोखरण-2: अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण किया। इसके 17 दिन बाद पाकिस्तान ने चगाई पहाड़ियों पर 6 बमों का परीक्षण करके जवाब दिया।
- न्यूक्लियर डिटरेंस: आज दोनों देशों के पास 150-160 परमाणु हथियार हैं, लेकिन 1999 के कारगिल युद्ध और 2008 के मुंबई हमलों ने साबित किया कि परमाणु हथियार आतंकवाद को नहीं रोक सकते।
सबक और सवाल: क्या अब भी गांधीवाद प्रासंगिक है?
- Morarji Desai की दृष्टि: वह चाहते थे कि भारत एक “नैतिक महाशक्ति” बने, जो हथियारों की होड़ के बजाय मानवता की बात करे।
- वर्तमान संदर्भ: 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक की। क्या यह देसाई के सिद्धांतों से विपरीत है?
- युवाओं की राय: एक सर्वे के मुताबिक, 65% भारतीय युवा मानते हैं कि देसाई को पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन 35% उनके साहस को सलाम करते हैं।
निष्कर्ष: इतिहास के पन्नों से सीख
मोरारजी देसाई का जीवन एक सवाल छोड़ जाता है: “क्या नैतिकता राष्ट्रीय सुरक्षा से ऊपर है?” उनका फैसला चाहे जो हो, लेकिन उन्होंने साबित किया कि सत्ता में रहते हुए भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया जा सकता। आज जब भारत “स्मार्ट वॉरफेयर” और “साइबर सुरक्षा” की बात करता है, तो देसाई की विरासत हमें याद दिलाती है कि शक्ति और संवेदनशीलता का संतुलन ही सच्ची राजनीति है।
चर्चा के लिए प्रश्न
- क्या आज के दौर में कोई नेता Morarji Desai जैसे सिद्धांतों पर चल सकता है?
- परमाणु हथियारों ने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध टाला है या तनाव बढ़ाया है?
यहाँ इस ब्लॉग पोस्ट में उपयोग की गई जानकारी के प्रमुख स्रोत और संदर्भ दिए गए हैं।
1. पुस्तकें और शोध ग्रंथ:
- “एक जीवन दो धरती” (राजमोहन गांधी): मोरारजी देसाई के राजनीतिक सफर और उनकी विदेश नीति पर विस्तृत विश्लेषण।
- “India’s Nuclear Policy” (जे.एन. दीक्षित): भारत के परमाणु कार्यक्रम का इतिहास और 1974-1998 के बीच के निर्णय।
- “The Nuclear Express” (थॉमस सी. रीड और डैनी स्टिलमैन): पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में A.Q. खान की भूमिका पर विस्तृत अध्याय।
- “Engaging India” (स्ट्रोब टैलबॉट): 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका-भारत वार्ता का दस्तावेज़ीकरण।
2. सरकारी दस्तावेज़ और रिपोर्ट्स:
- CIA की डीक्लासिफाइड फाइलें: 1978 में मोरारजी देसाई को दी गई चेतावनी के बारे में जानकारी (CIA Freedom of Information Act Archive)।
- भारतीय संसद की बहसें: 1977-79 के दौरान जनता पार्टी सरकार की परमाणु नीति पर चर्चा के रिकॉर्ड।
- “Nuclear Black Markets” (इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज): A.Q. खान नेटवर्क के तहत पाकिस्तान द्वारा प्रौद्योगिकी चोरी का विवरण।
3. मीडिया रिपोर्ट्स और इंटरव्यू:
- द न्यूयॉर्क टाइम्स (1974-1998): पोखरण परीक्षण और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया पर आर्काइव्ड रिपोर्ट्स।
- द हिंदू (2018): जनरल के. सुंदरजी का इंटरव्यू, जिन्होंने 1980 के दशक में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की वकालत की।
- बीबीसी डॉक्यूमेंट्री “Pakistan’s Nuclear Secrets” (2005): A.Q. खान के नेटवर्क और डच-यूरेनियम कनेक्शन पर खोजी रिपोर्ट।
4. विशेषज्ञ विश्लेषण:
- कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस: दक्षिण एशिया में परमाणु प्रतिस्पर्धा पर रिसर्च पेपर्स।
- ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन: मोरारजी देसाई की नीतियों का शीतयुद्ध युग पर प्रभाव।
- इंडियन एक्सप्रेस (2020): पूर्व कैबिनेट सचिव T.S.R. सुब्रह्मण्यम का लेख, जिसमें उन्होंने 1998 के परीक्षणों के पीछे की रणनीति पर चर्चा की।

5. ऐतिहासिक भाषण और प्राथमिक स्रोत:
- मोरारजी देसाई का UN में दिया भाषण (1977): परमाणु निरस्त्रीकरण की अपील (UN Digital Library)।
- जुल्फिकार अली भुट्टो की आत्मकथा “If I Am Assassinated”: पाकिस्तान के परमाणु महत्वाकांक्षाओं का उल्लेख।
- भारतीय सेना के पूर्व अधिकारियों के संस्मरण: 1971 के युद्ध और उसके बाद की रणनीतिक चुनौतियों का विवरण।
FAQ: Morarji Desai और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े सवाल-जवाब
1. Morarji Desai कौन थे?
Morarji Desai (1896–1995) भारत के चौथे प्रधानमंत्री थे और एक कट्टर गांधीवादी नेता। उन्होंने 1977 से 1979 तक देश की बागडोर संभाली। उनकी पहचान सादगी, अहिंसा और नैतिक सिद्धांतों के प्रति अटल समर्पण के लिए थी।
2. पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में CIA ने क्या जानकारी दी थी?
1978 में CIA ने Morarji Desai को “प्रोजेक्ट-706” के बारे में सूचना दी, जिसके तहत पाकिस्तान यूरेनियम संवर्धन तकनीक चुरा रहा था। इसकी अगुआई वैज्ञानिक ए.क्यू. खान कर रहे थे, जिन्होंने नीदरलैंड्स से डिज़ाइन चुराकर कहमा रिएक्टर बनाया।
3. Morarji Desai ने CIA के प्रस्ताव को क्यों ठुकराया?
तीन मुख्य कारण:
- गांधीवादी विचारधारा: उनका मानना था कि परमाणु हथियार मानवता के लिए खतरनाक हैं।
- CIA पर अविश्वास: उन्हें लगा कि अमेरिका अपने हितों के लिए भारत को इस्तेमाल करना चाहता है।
- राजनीतिक स्थिरता की कमी: उनकी गठबंधन सरकार कमजोर थी, जिससे बड़े सैन्य फैसले लेना मुश्किल था।
4. क्या Morarji Desai का फैसला भारत के लिए नुकसानदायक था?
विरोधी मानते हैं:
- पाकिस्तान ने 1980 के दशक में बम बना लिया, जिससे 1998 में भारत-पाकिस्तान परमाणु होड़ शुरू हुई।
समर्थक कहते हैं: - देसाई ने शीतयुद्ध के दौर में भारत को एक और युद्ध से बचाया और नैतिक नेतृत्व का उदाहरण पेश किया।
5. इजरायल ने इराक के परमाणु रिएक्टर को क्यों उड़ाया, जबकि भारत ने ऐसा नहीं किया?
- इजरायल का तर्क: उसने इराक के ओसिराक रिएक्टर (1981) को “निवारक हमला” बताया।
- भारत की स्थिति: देसाई के बाद की सरकारों ने भी सैन्य कार्रवाई से परहेज किया। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि 1980-83 में भारत के पास पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई का “सुनहरा मौका” था, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी रही।
6. पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में चीन की क्या भूमिका थी?
चीन ने पाकिस्तान को मिसाइल डिज़ाइन और परमाणु तकनीक उपलब्ध कराई। 1983 में पाकिस्तान ने चीन की मदद से अपना पहला परमाणु डिवाइस बनाया। यह सहयोग आज भी जारी है।
7. क्या 1998 के परमाणु परीक्षणों ने भारत-पाकिस्तान युद्ध रोक दिया?
- हाँ: परमाणु डिटरेंस के कारण 1999 (कारगिल) और 2008 (मुंबई हमले) जैसे संकटों में पूर्ण युद्ध टला।
- नहीं: आतंकवाद और प्रॉक्सी वॉर जैसे खतरे बने हुए हैं। परमाणु हथियारों ने तनाव को “नियंत्रित अस्थिरता” में बदल दिया है।
8. मोरारजी देसाई की विरासत क्या है?
- नैतिक नेतृत्व: वह अकेले PM थे, जिन्होंने परमाणु हथियारों को “अनैतिक” मानते हुए उनके इस्तेमाल से इनकार किया।
- विवाद: कई लोग उन्हें “अव्यावहारिक आदर्शवादी” मानते हैं, जबकि अन्य उनके सिद्धांतों को सम्मान देते हैं।
9. क्या आज कोई नेता देसाई जैसे सिद्धांतों पर चल सकता है?
वर्तमान युग में यह चुनौतीपूर्ण है। उदाहरण:
- 2019 में बालाकोट एयरस्ट्राइक ने भारत की “न्यूनतम बल” नीति को बदल दिया।
- हालाँकि, परमाणु निरस्त्रीकरण और शांति वार्ताएँ अभी भी अंतरराष्ट्रीय एजेंडे में शामिल हैं।
10. इस घटना से हमें क्या सीख मिलती है?
- रणनीति और नैतिकता का संतुलन: राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सिद्धांतों और व्यावहारिकता के बीच तालमेल ज़रूरी है।
- दीर्घकालीन दृष्टि: देसाई के फैसले ने दिखाया कि नेताओं को केवल तात्कालिक लाभ नहीं, बल्कि इतिहास की पुस्तकों में अपनी छवि का भी ध्यान रखना चाहिए।